जानिए लोन चुकाने के दो प्रमुख विकल्प – पार्ट पेमेंट और प्री-क्लोजर , किससे ज्यादा फायदा मिलता है।

Total view ( 286 ) || Published: 06-Jun-2025

जब हम कोई लोन लेते हैं, तो उसका सबसे बड़ा उद्देश्य होता है जल्दी और कम ब्याज में चुकता करना। लेकिन जब थोड़ा अतिरिक्त पैसा हमारे पास आता है, तब सवाल उठता है – क्या उस पैसे से लोन का पार्ट पेमेंट करें या पूरा प्री-क्लोजर?

यह लेख आपको 2025 के परिप्रेक्ष्य में समझाएगा कि दोनों विकल्पों में क्या अंतर है, उनके फायदे-नुकसान क्या हैं, और आपके लिए कौन सा बेहतर है – वो भी कहानी और उदाहरणों के ज़रिए।

पार्ट पेमेंट क्या है?

सरल भाषा में:

लोन की EMI के अलावा आप एक अतिरिक्त रकम बैंक को देते हैं, जिससे आपका मूलधन (Principal) घटता है। इससे ब्याज कम लगता है और अवधि छोटी हो सकती है।

उदाहरण:

मान लीजिए, आपने ₹10 लाख का होम लोन लिया है, 9% ब्याज पर 20 साल के लिए। आपने हर साल ₹50,000 का पार्ट पेमेंट किया, तो आपकी कुल ब्याज राशि लाखों में कम हो सकती है।

फायदे:

  • ब्याज की कुल राशि में कटौती

  • लोन की अवधि कम हो सकती है

  • EMI वही रहती है (जब तक आप कम न कराएं)

नुकसान:

  • बैंक कुछ केसों में चार्ज लगाते हैं (खासकर फ्लोटिंग रेट न हो तो)

  • तुरंत प्रभाव नहीं दिखता अगर EMI कम न हो

प्री-क्लोजर क्या है?

सरल भाषा में:

आप एकमुश्त रकम देकर पूरा लोन चुकता कर देते हैं – यानी लोन खात्मा।

उदाहरण:

मान लीजिए आपकी लोन की बकाया राशि ₹4 लाख है और आपके पास ₹4.2 लाख जमा हैं, तो आप बैंक को एक साथ रकम देकर लोन खत्म कर सकते हैं। इससे आगे कोई EMI नहीं देना होगा।

फायदे:

  • मानसिक शांति (EMI से मुक्ति)

  • ब्याज से पूर्ण राहत

  • क्रेडिट स्कोर अच्छा होता है (अगर सही तरीके से क्लोज़ किया जाए)

नुकसान:

  • बैंक कुछ प्री-क्लोजर चार्ज वसूल सकते हैं

  • एकमुश्त राशि की ज़रूरत

  • भविष्य में टैक्स बेनिफिट मिस हो सकते हैं (होम लोन के केस में)

कहानी – रवी और सुमन की दुविधा

रवी, एक IT प्रोफेशनल है, जिसने ₹12 लाख का होम लोन लिया था। हर साल बोनस में उसे ₹1.5 लाख मिलते थे। वह हर साल इसका पार्ट पेमेंट करता था। 10 साल के लोन को उसने 7 साल में निपटा दिया, और लाखों का ब्याज बचाया।

सुमन, एक स्कूल टीचर है। उसे PF से रिटायरमेंट पर ₹5 लाख मिले। उसने बचे हुए ₹4.8 लाख का लोन एक बार में खत्म कर दिया (प्री-क्लोजर)। अब हर महीने EMI का झंझट नहीं।

दोनों के तरीकों में फायदे थे – रवी ने धैर्य से बचत की, और सुमन ने एक बार में राहत पाई।

तुलना तालिका: पार्ट पेमेंट vs प्री-क्लोजर

विशेषतापार्ट पेमेंटप्री-क्लोजर
भुगतानआंशिकपूर्ण
EMIसमान रहती है (यदि न बदली जाए)समाप्त हो जाती है
ब्याज लाभधीरे-धीरे कमएकमुश्त बचत
चार्जेसकुछ केसों मेंअधिक संभावना
दस्तावेज़ी प्रक्रियासरलथोड़ी लंबी
मानसिक शांतिनहीं (EMI जारी रहती है)हाँ

कब चुनें पार्ट पेमेंट?

  • जब आपके पास थोड़ा अतिरिक्त फंड हो (बोनस, सैलरी इनक्रीमेंट)

  • जब आप EMI में बदलाव नहीं चाहते पर अवधि कम करना चाहते हैं

  • जब आप टैक्स बेनिफिट बनाए रखना चाहते हैं (होम लोन)

कब चुनें प्री-क्लोजर?

  • जब आपके पास पर्याप्त एकमुश्त राशि हो

  • जब आप ऋण से मुक्त होना चाहते हैं

  • जब ब्याज दरें बढ़ रही हों और लोन महंगा लगने लगे

आवश्यक बातें:

  • बैंक से शर्तें पूछें: कुछ बैंक प्री-क्लोजर या पार्ट पेमेंट पर चार्ज लगाते हैं

  • फ्लोटिंग बनाम फिक्स्ड रेट: फ्लोटिंग रेट पर पार्ट पेमेंट/प्री-क्लोजर आसान और फ्री होता है

  • टैक्स प्लानिंग ध्यान में रखें: होम लोन का टैक्स फायदा खत्म न हो जाए

पार्ट पेमेंट और प्री-क्लोजर – दोनों ही लोन चुकाने के शानदार विकल्प हैं, बस आपकी ज़रूरत और परिस्थिति पर निर्भर करता है कि कौन सा बेहतर है। अगर आप समय-समय पर पैसा लगाना चाहते हैं तो पार्ट पेमेंट बढ़िया है, लेकिन अगर आप पूरी रकम के साथ मुक्त होना चाहते हैं – तो प्री-क्लोजर अपनाएं।

ध्यान रहे, हर विकल्प लेने से पहले बैंक से जुड़ी सभी शर्तें और चार्जेस ज़रूर जान लें।

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